सख़्त भू कानून और उत्तराखंड वासी
खुर्शीद अहमद
इस वक्त हर गोशे से यह आवाज़ उठ रही है कि उत्तराखंड में हिमाचल प्रदेश की तरह सख़्त भू कानून होना चाहिए। उत्तराखंड में बाहर से आए और बसे भारतीय नागरिकों को जल, ज़मीन, जंगल पर कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। उत्तराखंड के समस्त अधिकार सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंड के मूल निवासियों को मिलने चाहिए इससे हमारा उत्तराखंड बहुत तरक्की करेगा और उत्तराखंड की सारी संपदा बची रहेगी। जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश इन दोनों राज्यों में भी इस तरह के कानून हैं मगर क्या यह दोनो राज्य दिल्ली, पंजाब या हरियाणा जैसे सटे हुए राज्यों के बराबर डेवलपमेंट कर पाए। क्या आज सरकार जम्मू कश्मीर के विकास के लिए तमाम देश विदेश के नागरिकों को खुला आमंत्रण नही दे रही कि आओ प्रदेश वा देश के विकास के लिए जम्मू कश्मीर आओ।
भारतीय संविधान तमाम नागरिकों को देश के किसी हिस्से में रहने, बसने, कारोबार करने का हक़ देता है तो फिर यह संकुचिता क्यों। क्या उत्तराखंड सरकार निवेशकों को उत्तराखंड में निवेश करने के लिए प्रयत्नशील नही है। अगर यह सबकुछ की उत्तराखंड सरकार को जरूरत है तो फिर ओपन नीति से काम करना होगा। आज उत्तराखंड में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन और अन्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश की कोशिश की जा रही हैं इन सब को क्रियान्वित करने के लिए श्रमिक, स्टाफ कहा से मिलेगा। हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू कश्मीर में बिहार, उड़ीसा और अन्य राज्यों के बहुत से कामगार हर क्षेत्र की जरूरतों को पूरा कर रहे है। अगर हर राज्य अपनी जरूरत के मुताबिक ही अपनी नीति निर्धारित करेगा तो देश का संगीर्ण विकास कैसे होगा। इस प्रकार देश का फेडरल स्ट्रक्चर बिगड़ जाएगा और देश संकीर्णता की दलदल में फंस जाएगा और फिर हर राज्य में दूसरे राज्य के नागरिकों के लिए एक दूंद। हर कोई अंदर, बाहर, मूल निवासी, बाहरी, पहाड़ी वा मैदानी, उत्तराखंडी वा गैर उत्तराखंडी के चक्कर में पड़ जाएगा और वक्त के साथ आपसी प्रेम पर लाईन खींच दी जाएगी। उत्तराखंड में उत्तराखंडी वा गैर उत्तराखंडी का बोलबाला हो जाएगा और संविधान की आर्टिकल 14 में निहित मूल भावना की धारणा ही खत्म हो जाएगी जो भारत के समस्त नागरिकों को समानता का मंत्र प्रदान करता हैं।