कथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों और उनके नेताओं की खिसकती जमीन

निकाय चुनाव से निकला पैगाम बहुत कुछ कहता है जिसे समझने की जरूरत

(चुनावी विश्लेषण – शिब्ली रामपुरी )

यूपी के निकाय चुनाव में कई दिग्गज नेताओं की सियासी जमीन खिसकती दिखाई दी भले ही वह चुनावी मैदान में ना उतरे हों लेकिन उन्होंने जहां पर जिसका समर्थन किया उसको करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है. अधिकतर जगहों पर तो ऐसा ही हुआ है.

मेरठ की बात करें तो यहां पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को सबसे बड़ी टक्कर एमआईएम के प्रत्याशी की ओर से मिली और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे जबकि एमआईएम की ओर से चुनावी मैदान में उतर रहे प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे. मेरठ में भले ही भाजपा कामयाब हो गई हो लेकिन जिस तरह से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे उनको करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा उससे साफ है कि अब मुसलमान काफी कुछ सोचने पर मजबूर हो गया है और वह खुद को सेकुलर और मुसलमानों का हमदर्द कहने वाली राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं के बहकावे में आने वाला नहीं है.

बरेली की बात करें तो यहां पर उलेमाओं ने अपने अपने तरीके से किसी पार्टी का समर्थन तो किसी का विरोध किया था लेकिन यहां पर मुसलमानों ने रहनुमाओं की बात को भी दरकिनार करते हुए अपनी मर्जी से वोट किया.
यूपी में मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने कोई खास करिश्मा नहीं किया लेकिन उसे जिस तरह से कई जगह पर कामयाबी मिली और बहुत सारी जगहों पर उसको वोट काफी संख्या में मिला उससे साफ है कि यूपी का मुसलमान अब खुद को सेकुलर कहने वाली पार्टियों के चंगुल में आने वाला नहीं है और ना ही अब उस पर इस बात का कोई फर्क पड़ता है कि भाजपा को हराओ या भाजपा आ जाएगी तो तुम्हारी बदहाली में और बढ़ोतरी हो जाएगी इसलिए भाजपा को हराना जरूरी है इस तरीके की बातों का मुसलमानों पर अब कोई असर नहीं होता है क्योंकि वह समझ चुका है कि भाजपा के नाम पर उसको सिर्फ बेवकूफ बनाया जाता है और भाजपा हराओ की पॉलिटिक्स की वजह से सियासी और आर्थिक तौर पर भी मुसलमानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. मुसलमानों को अब किसी खास पार्टी से गुरेज नहीं है और ना ही वह किसी के समर्थन या विरोध में बंधकर रहना चाहता है वह चाहता है सिर्फ तरक्की और विकास.

निकाय चुनाव से जो संदेश निकला है वह बहुत दूर तक जाने की उम्मीद है और लोकसभा चुनाव में भी काफी बेहतर नतीजे देखने को मिलेंगे.

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