भाजपा को मिलने लगा मुस्लिम वोट तो तेज़ होने लगी विपक्षी पार्टियों की धड़कनें
शिब्ली रामपुरी
2014 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने शानदार तरीके से कामयाबी हासिल की तो उसमें एक बड़ा योगदान मुस्लिम महिलाओं के वोट का बताया गया था और भाजपा के कई नेताओं की ओर से कहा गया था कि हमें मुस्लिम महिलाओं का काफी वोट मिला है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी मुस्लिम महिलाओं के हितों की बात करती है दरअसल उस समय भाजपा ने तीन तलाक आदि जैसे कई मुद्दे उठाए थे जिसके बाद भाजपा का कहना था कि इन मुद्दों से मुस्लिम महिलाएं काफी संख्या में भाजपा के साथ जुड़ी हैं और उन्होंने भाजपा को लोकसभा चुनाव में वोट दिया.
सत्ता में आने के बाद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बनने के बाद भाजपा की ओर से सबका साथ सबका विकास का नारा दिया गया तो कहा गया कि इसमें सभी वर्ग शामिल हैं और बगैर किसी भेदभाव के सब का विकास कराया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने सबका साथ सबका विकास और सब का विश्वास नारा दिया. भाजपा ने राजनीतिक तौर पर मुसलमानों को कितना मजबूत किया यह अलग बात है लेकिन जहां तक सरकारी योजनाओं की बात है तो भाजपा की झोली में ऐसे बहुत मुसलमानों का वोट गया कि जो भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं से काफी खुश हैं और वह भाजपा को वोट दे रहे हैं और यह किसी एक राज्य की बात नहीं है बल्कि कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को कम या ज्यादा तौर पर मुसलमानों का वोट मिला है. ऐसे में उन पार्टियों का चिंतित होना लाजमी है कि जो खुद को मुसलमानों का हमदर्द और सेकुलर बताती हैं और कोई मौका नहीं छोड़ती यह कहने में कि हम ही मुसलमानों के सबसे बड़े हमदर्द हैं जबकि यह सवाल आज भी अपनी जगह कायम है कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी देश में अगर मुसलमानों की स्थिति इतनी बदहाल है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है?
उत्तर प्रदेश की अगर हम बात करें तो यहां पर भी भाजपा को विधानसभा चुनाव में मुसलमानों का काफी वोट मिला और कुछ वक्त पहले हुए निकाय चुनाव में तो भाजपा की झोली में मुसलमानो का काफी वोट गया है जिस पर भाजपा के कई नेताओं ने मुसलमानों का आभार भी जताया था. दरअसल मुस्लिम समाज उन राजनीतिक पार्टियों को भली भांति देख चुका है कि जिन्होंने सिर्फ सुनहरे ख्वाब दिखाने के अलावा कुछ नहीं किया और चुनाव जीतने के बाद मुसलमानों को नजरअंदाज कर दिया. यह बात आईने की तरह साफ है कि विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान खुद को मुसलमानों का हमदर्द बताने वाली एक पार्टी और उसके शीर्ष नेताओं ने तो मुस्लिम नेताओं से काफी दूरी बनाकर के रखी थी और कई जगह तो मंच पर मुस्लिम नेता तक नजर नहीं आते थे. ऐसे में मुसलमानों की नाराजगी इन राजनीतिक पार्टियों पर भारी पड़ रही है और मुसलमान राजनीति में नई संभावनाएं तलाश करने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं वह सोच रहे हैं कि आखिर कब तक झूठे ख्वाब दिखाकर उनको बहकाया जाता रहेगा.