ढकरानी कोर्ट के मुख्य द्वार पर ढाबे में सिसकता बचपन
विकासनगर (डॉ बिलाल अंसारी) जिस उम्र में बच्चों के हाथों में कॉपी किताबें होनी चाहिए, उन हाथों में इस कम उम्र में कहीं पर चाय की केतली है, और कहीं पर झूठे बर्तन हैं, कोई बच्चा छोटू बनकर होटल व ढाबों पर हाथ में कपड़ा लिए टेबल साफ कर रहा है। ऐसे बच्चों का बचपन इन होटल एंव ढाबो में सिसक कर दम तोड़ रहा है। इसका जिम्मेदार कौन है? ऐसे बच्चों के परिजन या ढाबे व होटल मे कम पैसे में अधिक काम कराने वाले होटल व ढाबा संचालक ?
बाल मजदूरी कराने का एक संवेदनशील मामला सामने आया है। जिसमें ढकरानी कोर्ट के गेट के सामने एक ढाबे पर बच्चों से कार्य कराया जा रहा है। यह बाल श्रमिक उर्फ छोटू चाय बनाने के साथ ही कोर्ट परिसर में भी चाय की आपूर्ति कर रहा है। सवाल यह है कि कानून का पाठ कोर्ट कचहरी से ज्यादा कहां सिखाया जाता होगा और नियमों का हवाला देकर पालन करने की बातें कोर्ट कचहरी से ज्यादा शायद ही कहीं दूसरी जगह होती हो।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि कोर्ट में अधिकारियों का आना जाना प्रतिदिन लगा रहता है। ऐसे में यह सवाल ज़रूरी है कि आखिर क्यों किसी अधिकारी की नजर इस ओर नहीं जाती ? बाल कल्याण विभाग के अधिकारी क्यों इन ढाबा संचालकों पर कार्यवाही नहीं कर पाते ? क्यों घुटते हुए बचपन पर होने वाले अत्याचार को देखकर भी अधिकारीगण अनदेखा कर रहे हैं ? इसकी वजह ढूंढनी होगी।
अपने बचपन की आहुति दे रहे इन बाल श्रमिकों तक ना तो श्रम विभाग के हाथ ही पहुंच पाते हैं, और ना ही प्रशासन इनकी कोई सुध लेता है। सर्व शिक्षा अभियान ऐसे बच्चों के लिए बेमानी है। ढाबा संचालक सीधे बच्चों के परिजनों से संपर्क कर, इन्हें पैसे का लालच देकर मजबूर बचपन को खरीद लेते हैं और अपने यहां काम पर लगा लेते हैं। अधिकांश बाल मजदूरों की दिहाड़ी बच्चों के मां-बाप जाकर होटल मालिक से ले जाते हैं। कुछ बच्चों को तो यह भी पता नहीं होता कि उनकी मजदूरी कितनी है ? होटल मालिक से सहमे रहने वाले बाल श्रमिक चाह कर भी इस नर्क से छुटकारा नहीं पाते।