प्रिंट मीडिया के सामने बढ़ती चुनौतियां

क्षेत्रीय समाचार पत्रों का प्रकाशन बना बेहद कठिन

शिब्ली रामपुरी

 मौजूदा दौर में प्रिंट मीडिया के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हो गया है और इसी कारण अब हम सिर्फ कुछ चंद समाचार पत्र ही पढ़ पाते हैं और बहुत सारे समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद हो चुका है या फिर वह बेहद सीमित हो गए हैं.
दरअसल इसका कारण यह है कि एक ओर जहां डिजिटल युग ने अंगड़ाई ली है तो वहीं सरकारी स्तर पर अब छोटे और मंझौले समाचार पत्रों के लिए कोई खास सुविधा नहीं रह गई है. सीधे शब्दों में कहें तो सरकारी स्तर पर अनदेखी का शिकार छोटे शहरों से निकलने वाले समाचार पत्र बन चुके हैं क्योंकि सरकारी स्तर पर उनके लिए नियम और शर्तें तो बहुत बढ़ा दी गई हैं लेकिन जो विज्ञापन का मामला है उसमें काफी कटौती कर दी गई है.

ऐसे में जो बड़े उद्योगपतियों या राजनीतिक जगत से जुड़े लोगों के समाचार पत्र हैं वह तो काफी फल फूल रहे हैं लेकिन जो साधारण व्यक्तियों के समाचार पत्र हैं वह बंद होने के कगार पर पहुंच चुके हैं बल्कि बहुत जगह तो अधिकतर क्षेत्रीय समाचार पत्र बंद भी हो चुके हैं. यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि ऐसे में सबसे बड़ा नुकसान उर्दू अखबारों को हुआ है कभी क्षेत्रीय समाचार पत्रों में उर्दू के अखबारों की भी गिनती हुआ करती थी लेकिन अब तकरीबन अधिकतर उर्दू के समाचार पत्र जो साप्ताहिक थे वह बंद हो चुके हैं और कई जगह पर तो दैनिक उर्दू अखबारों का प्रकाशन भी लगभग बंद हो चुका है.

डिजिटल युग में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बावजूद भी समाचार पत्रों पर लोगों का यकीन आज भी कायम है लेकिन सरकारी अनदेखी का शिकार हुए समाचार पत्र आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं जो कुछ चल रहे हैं यदि उनको प्रोत्साहित नहीं किया जाता है तो फिर सिर्फ कुछ चंद कॉरपोरेट जगत के समाचार पत्र ही वजूद में रह जाएंगे.

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