क़ाज़ी परिवार की राजनीति का क्या होगा भविष्य? भूल भुलैया में फंस गए हैं इमरान

अमजद उस्मानी

          न सिर्फ जिला सहारनपुर बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिले ऐसे रहे हैं जहाँ काज़ी रशीद मसूद का जबरदस्त राजनीतिक जलवा हुआ करता था |1977 की जनता पार्टी लहर में वह पहली बार लोकसभा के लिए चुने गये थे | चौधरी चरण सिंह के बाद वह अजीत सिंह, वीपी सिंह और मुलायम सिंह यादव के करीबी नेता रहे | उपराष्ट्रपति जैसे प्रतिष्ठित पद के लिए भी वह विपक्ष के उम्मीदवार रहे | जैसा कि आज भारतीय राजनीति का चलन है कि नेता अपने परिजनों को भी राजनीति में अपना वारिस बनाने लगे हैं, उसी तरह काज़ी रशीद मसूद ने भी अपने बेटे और भतीजे को आगे बढाया | भतीजे इमरान मसूद को तो उन्होंने अपनी ही सरकार के मंत्री जगदीश राणा के खिलाफ पार्टी से बगावत करके बेहट सीट से 2007 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ाकर जिताया भी | बाद के दिनों में उनके परिवार में ही राजनीति की दीवारें खड़ी हो गई | काज़ी रशीद मसूद के राजनीतिक जीवन का सबसे दुखदायी पहलू यह रहा कि एक मुकदमे में उनको सज़ा हो गई | जिस कारण वक्त से पहले ही उनकी राजनीति एक तरह से खत्म हो गई और आज उनकी उजड़ी हुई राजनीतिक खेती के वारिस उनके भतीजे इमरान मसूद हैं |
अब बात करें इमरान मसूद की तो यह पता लगाना मुश्किल काम है कि इमरान मसूद की राजनीतिक विचार धारा क्या है? पिछले कुछ समय में उन्होंने जिस प्रकार अपनी वफा दारियां और राजनीतिक पार्टियां जल्दी जल्दी बदली हैं, उससे उनका राजनीतिक वज़न कम हुआ है | खुद को सिकंदर साबित करने के चक्कर में कुछ माह पूर्व वह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गये और बड़े बड़े दावे करने लगे | हालांकि सब जानते हैं कि मायानगरी अर्थात बीएसपी में यह सब नहीं चलता है | इसीलिए बहुत से लोग उसदिन का इंतजार कर रहे थे कि जब मायावती उन्हें बाहर का रास्ता दिखायें और आखिरकार वह बसपा से बाहर कर ही दिये गए | आज हालत यह है कि इमरान मसूद ऐसे मुकाम पर खड़े हैं जहाँ से कोई रास्ता ही दिखाई नहीं दे रहा है | मायावती ने अपनी पार्टी से बहुत से ऐसे लोगों को बाहर किया है जो किसी वक्त उनके बहुत भरोसेमंद रहे हैं जैसे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और आर. के. चौधरी | आज ये दोनों किस हाल में हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है | अब सवाल यह है कि इमरान मसूद का क्या होगा?
             जहाँ तक इमरान मसूद का सवाल है तो उनका स्टाइल ऐसा है कि वह किसी बड़े नेता के पीछे चलना पसंद नहीं करते हैं | राजनीति में वह सब कुछ सिर्फ अपने लिए चाहते हैं | चाहे इसके लिए बैकवर्ड भी बनना पड़े | पद की इतनी लालसा उनसे बार बार गलती करा रही है |कांग्रेस पार्टी में उनकी अच्छी स्थिति थी लेकिन वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव नहीं जीत सकते थे, इसलिए समाजवादी पार्टी में चले गए | ऐन वक्त पर वफादारी बदलने का इनाम वहाँ नहीं मिला तो हाथी पर सवार हो गये | फिलहाल उनके लिए हालात अनुकूल नहीं है क्योंकि इस समय देश की राजनीति महत्वपूर्ण हो गयी है | राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की जो राजनीति चल रही है उसमें सहारनपुर की राजनीति महत्वपूर्ण नहीं है | इंडिया गठबंधन में शामिल होने के लिए मायावती पर काफी दबाव है | साथ ही यह उनके लिए मुनाफे का सौदा भी है | यदि ऐसा होता है तो इमरान मसूद के लिए चुनाव लड़ने का कोई मौका किसी पार्टी में नहीं है और चुनाव लड़े बगैर वह मानेंगे नहीं क्योंकि चुनाव बाज़ नेताओं का मानना है कि अगर वह चुनाव नहीं लड़ेंगे तो उनके समर्थक कहीं और चले जायेगे लेकिन इमरान मसूद के सामने यह भी सवाल है कि अगर वह इसी प्रकार लगातार हारते रहे तो जनता कबतक उनके साथ रहेगी |

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