मदरसा रहमानिया और जामा मस्जिद के लिए प्रशासक नियुक्त,
कमेटी में झगड़ने वालों के लिए गंगनहर का पानी भी पड़ा कम
अमजद उस्मानी
रुड़की- एक कहानी बड़ी मशहूर रही है जिसमें रोटी के एक टुकड़े को लेकर दो बिल्लियाँ आपस में लड़ती हैं, उनको लड़ता हुआ देखकर बंदर फैसला कराने के लिए आता है और चालाकी से रोटी का पूरा टुकड़ा चट कर जाता है | रुड़की की जामा मस्जिद और रहमानिया मदरसा शहर के मुसलमानों की पहचान हैं, लोगों के जज़्बात इससे जुड़े हुए हैं, जैसा कि मुसलमानों की आदत बन गयी है कि अपनी हरेक संस्था में झगड़े, शिकायत, एक दूसरे पर आरोप, मुकदमेबाजी आम बात हो गयी है, यही सब कुछ जामा मस्जिद और रहमानिया मदरसा में सालों से चल रहा था, जिसके चलते पीसीएस अफसर को यहाँ प्रशासक बना दिया गया था, एक अफसर से आप उम्मीद कर सकते हैं कि सब काम नियम कानून के अनुसार होंगे, इस मामले में भी कमोबेश ऐसा ही रहा है लेकिन सालों चली इस व्यवस्था के बावजूद झगड़ने वाले गुटों को एक दिन भी ख्याल नहीं आया कि बाज़ी उनके हाथ से निकल रही है, लिहाज़ा आपस में सुलह का रास्ता निकाल कर संस्था को बचा लिया जाए, आखिरकार वही हुआ जो ऊपर बंदर वाली कहानी में ब्यान किया गया है, उत्तराखंड में भाजपा सरकार है, भाजपा और आर एस एस का अपना एजेण्डा है, मदरसे हमेशा उनके निशाने पर रहते हैं, लिहाज़ा एजेण्डा लागू हुआ और आनन -फानन में पीसीएस अधिकारी से इस्तीफा लेकर फौरन हाजी मुस्तहकम को तीन साल के लिए प्रशासक नियुक्त कर दिया गया, हाजी मुस्तकीम न मुसलमानों के प्रतिनिधि हैं और न कभी जामा मस्जिद और मदरसे के शुभचिंतक रहे हैं, उनकी सिर्फ एक खूबी है कि वे भाजपाई हैं और हिंदुत्व की वकालत करते हैं, उनके जरिये भाजपा आसानी से अपना एजेण्डा लागू कर सकती है और इसकी शुरुआत हो भी गयी है,
हाजी मुस्तकीम ने चार्ज लेते ही ऐलान भी कर दिया है कि मदरसे में विद्यार्थियों को एक वक्त वेज खाना दिया जायेगा, हाजी मुस्तकीम भाजपाई हैं और इस नाते उनको लोगों के खाने पीने को चैक करने का अधिकार है, चिकन बिरयानी बेचने वालों के बर्तन भाजपाई वैसे भी चैक करते रहते हैं, यह तो फिर भी मदरसा है और हाजी मुस्तकीम प्रशासक हैं और अपने आकाओं को उन्हें खुश भी करना है मगर वह शायद भूल गए हैं कि मदरसा कौम की अमानत है और कौम के पैसों से ही मदरसे का लंगर चलता है, इसलिए बेहतर होगा कि लोगों के जज़्बात से न खेला जाये,
जहाँ तक मदरसा रहमानिया का सवाल है तो वह कोई दोचार बरस तो खड़ा नहीं हुआ है, उसे यहाँ तक लाने में कई नस्लों की मेहनत, जद्दोजहद और कुर्बानियां शामिल रही हैं, उत्तरप्रदेश के ज़माने में यह एक आदर्श मदरसा हुआ करता था, यह मदरसा यूपी के उन गिने चुने मदरसों में शामिल था जिन्हें सरकार ग्रांट देती थी, जो आज भी जारी है, हाजी सुलतान अहमद रुड़की शहर के ऐसे मुस्लिम नेता थे जिनकी एक गरिमा थी, उनके प्रबंधन के दौरान मदरसे और मस्जिद में बहुत काम हुआ, उनके बाद कई तरह के विवाद खड़े हुए लेकिन शहर के लोगों ने समझदारी से उनको निपटा दिया, बाद के दिनों में हाजी सलीम खान और डाॅक्टर इरशाद मसूद ने भी मदरसे और मस्जिद के लिए काफी काम किया, हाजी सलीम खान और डाॅक्टर इरशाद मसूद का जहाँ तक सवाल है, उनकी नीयत पर शक करने की कोई गुंजाइश नहीं है लेकिन साथ ही एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि मदरसा और मस्जिद वक्फ के इंतजाम दौर में उनके इर्दगिर्द कुछ ऐसे लोग जमा हो गये थे जिनकी नीयत साफ़ नहीं थी, हाजी मुस्तकीम प्रशासक के रूप में जब चार्ज लेने आये तो उनमें से कुछ लोग उनका बढ़ चढ़ कर इस्तकबाल कर रहे थे,
फिलहाल वक्फ बोर्ड के जरिये बीजेपी ने पर्दे के पीछे से मदरसे पर कंट्रोल हासिल कर लिया है, ताज़ा घटनाक्रम मदरसे और मस्जिद के शुभचिंतक परेशान हैं, अपने छोटे मोटे मकसद के लिए मदरसे को अखाड़ा बनाने वाले आज नदारद हैं, उनकी बेशर्मी के सामने गंगनहर का पानी भी कम पड़ जायेगा, ऐसे हालात में जरूरी है कि मदरसा रहमानिया और जामा मस्जिद के शुभचिंतक आगे आयें और सभी तरह के विवाद और फसाद को समाप्त कर के एक सर्व सम्मत कमेटी बनायी जाये, वक्फ बोर्ड और अन्य सरकारी विभागों से उस कमेटी को मंजूरी दिलाकर मदरसा रहमानिया और जामा मस्जिद का बेहतरीन इंतजाम किया जाये, वक्फ बोर्ड से अपनी संस्थाओं की बेहतरी की उम्मीद करना वैसे भी बेकार है क्योंकि वक्फ बोर्ड के साये में आज तक कोई भी संस्था हरी भरी नहीं रही है|