मायावती का राजनीतिक स्टाइल, पार्टी में नेताओं का भविष्य सुरक्षित है न इज्जत

अमजद उस्मानी

रुड़की – बसपा सुप्रीमो मायावती का राजनीतिक स्टाइल कुछ ऐसा है कि पार्टी के नेताओं को विश्वास ही नहीं होता है कि वे कब तक पार्टी में बने रहेंगे | किसी भी नेता को किसी भी समय बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है | पांच महीने पहले गाजे बाजे के साथ निर्दलीय विधायक उमेश कुमार की पत्नी सोनिया शर्मा ने बसपा की सदस्यता ग्रहण की थी | उनके आने से बसपा की “बहन जी ” इतना गद- गद थीं कि उन्हें पार्टी में शामिल करते ही प्रदेश महामंत्री के साथ ही हरिद्वार लोकसभा सीट की प्रभारी भी बना दिया गया | अब अचानक से उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है तो अनेक सवाल भी खड़े हो रहे हैं |
अगले वर्ष 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं | सभी पार्टियां अपने संगठन को मज़बूत और सक्रिय करने में लगी हैं | ऐसे में बसपा द्वारा सोनिया शर्मा के अचानक निष्कासन का औचित्य न तो पार्टी कार्यकर्ताओं को समझ में आ रहा है और न ही आम लोग इसका मतलब समझ पाये हैं | वैसे मायावती का पार्टी चलाने का जो तरीका है, वह जगजाहिर है | पार्टी में लोगों की एंट्री कैसे होती है और कैसे उम्मीदवार बना जाता है उसके कुछ तयशुदा मानक हैं | पार्टी में विभिन्न पदों पर लोगों को नामित करने का भी वही मानक है जो सांसद और विधायक के टिकट के लिए निर्धारित हैं | ऐसे में पार्टी का जो वफादार और समर्पित कार्यकर्ता है वह न केवल अपने को उपेक्षित बल्कि ठगा हुआ महसूस करता है |
अब बात करते हैं सोनिया शर्मा के अचानक निष्कासन की | इस सम्बन्ध में कई बातें निकल कर सामने आ रही हैं | सोनिया शर्मा ने जब बसपा ज्वाइन की तो आम लोगों में यह स्पष्ट संदेश गया था कि सोनिया शर्मा केवल मुखौटा हैं, असल उम्मीदवार उमेश कुमार ही होंगे जोकि निर्दलीय विधायक होने के कारण तकनीकी लिहाज़ से अभी बसपा की सदस्यता नहीं ले सकते हैं और चुनाव के समय वह अपनी विधायकी दांव पर लगा कर स्वयं चुनाव लड़ेंगे | क्षेत्र में उनकी सक्रियता से भी यही संदेश जा रहा था | पिछले दिनों अतिवृष्टि और बाढ़ के कारण जो स्थिति बनी थी, उसमें लोग क्षेत्रीय सांसद से नाराज थे | सांसद डाक्टर निशंक को कुछ जगह पर विरोध झेलना भी पड़ा | दूसरीओर विधायक उमेश कुमार ने अपने स्तर से जल निकासी और अन्य तरीकों से लोगों की मदद की | जाहिर है कि इसका प्रतिकूल प्रभाव भाजपा की संभावनाओं पर पड़ना स्वाभाविक था | बसपा के बारे में माना जा रहा है कि वह इस समय उत्तर प्रदेश की राजनीति भाजपा के गणित को सुधारने के लिए कर रही है | उत्तराखंड में केवल हरिद्वार लोकसभा सीट ही ऐसी है कि जहाँ वह अपना अच्छा खासा वजूद रखती है | साथ ही यह सीट भाजपा के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है | गत दो बार से भाजपा इस सीट पर काबिज है | उमेश कुमार के माध्यम से बसपा इसबार भाजपा पर भारी पड़ रही थी | राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की राह आसान करने के लिए मायावती द्वारा दबाव में यह निर्णय लिया गया लगता है | हालांकि कोई पार्टी किसी दूसरी पार्टी को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसे काम नहीं करती है लेकिन यूपी में बीजेपी से बसपा सुप्रीमो मायावती की अंदरूनी सेटिंग भी जगजाहिर है |
एक अन्य पहलू यह भी बताया जा रहा है कि बसपा सुप्रीमो ने उत्तराखण्ड में तीन प्रदेश प्रभारी नियुक्त किये हुए हैं | इनके अलावा एक प्रदेश अध्यक्ष और एक हरिद्वार जिला अध्यक्ष हैं | इन सब की अपेक्षायें और ख्वाहिशें हैं | समय -समय पर इनको पूरा करना टिकट चाहने वालों की जिम्मेदारी होती है | ऐसे में देखने की बात यह होती है कि कौन कब तक अपना धैर्य बनाये रखकर उन्हें खुश रख सकता है | पार्टी संगठन के ये लोग सीधे “बहन जी” को रिपोर्ट करते हैं और बहन जी के निर्देश मिलते ही जिला अध्यक्ष भी किसी प्रदेशीय पदाधिकारी के निष्कासन का ऐलान कर सकता है | बहरहाल बसपा के इस कदम से भाजपा को फिलहाल राहत महसूस हो रही है लेकिन विधायक उमेश कुमार ने इस पर अपनी जो प्रतिक्रिया दी है वह अपने आप में महत्वपूर्ण है | उन्होंने कहा है कि बसपा से टिकट मिलने पर तो सोनिया शर्मा ही सोनिया शर्मा जी चुनाव लड़ती, लेकिन अब मैं ही निर्दलीय चुनाव लड़ूंगा | इस घोषणा से इतना स्पष्ट है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में यहाँ दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा |

अमजद उस्मानी

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