कर्नाटक की जीत में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे का दलित चेहरा बना निर्णायक

कांग्रेस दलित जगजीवनराम को प्रधानमंत्री न बनने देने के आरोप से मुक्त हो सकती है खड़गे को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाकर

पत्रकार दीपक मौर्य

साथियों, सबसे पहले तो मोहब्बत की दुकान खोलकर कर्नाटक जीतने पर कांग्रेस को बहुत बहुत बधाई। वैसे तो जीत में सभी का योगदान होता है चाहे वो बड़ा पदाधिकारी हो या छोटा। लेकिन कर्नाटक की जीत पर कांग्रेस वैसी ही गलती कर रही है जैसी की भाजपा। अगर कर्नाटक में भाजपा जीत जाती तो उसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को चला जाता और अगर हार गई है तो उसकी जिम्मेदारी बेचारे अध्यक्ष नड्डा पर। यही काम कांग्रेस भी कर रही है कि जीत का श्रेय राहुल गांधी उसके बाद डी शिवकुमार और सिद्धारमैय्या को दे रही है जबकि इसका मुख्य श्रेय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष @मल्लिकार्जुन खड़गे को जाता है। राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद खड़गे के नेतृत्व में आप हिमाचल जीते और उनके गृह प्रदेश कर्नाटक में जीते। मै ये नही कह रहा हूं कि इन जीतो में राहुल गांधी का योगदान नही है। वास्तव में उनकी भारत जोड़ो यात्रा का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है जनता ने उन्हें अपने दिल में जगह दी है। डी शिवकुमार और सिद्धारमैय्या कर्नाटक के अच्छे नेता हैं और उनके योगदान को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। जीत में तो एक बूथ के कार्यकर्ता की भी अहम भूमिका होती है। दूसरा कर्नाटक में कांग्रेस संगठित होकर चुनाव लड़ी है। सभी के योगदान को कंसीडर करके भी राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते खड़गे जी का सम्मान कुछ ज्यादा बनता ही है।

मै खड़गे जी की तरफदारी क्यों कर रहा हूं इस पर थोड़ा सा प्रकाश डाल देता हूं। आपने उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष इसलिए चुना है कि वो अपने आप में एक बड़ा दलित चेहरा हैं इसी का फायदा आपको हिमाचल और कर्नाटक में मिला है। दलित वोट आपको दक्षिण भारत में तो उनके नाम पर लामबंद होकर एकमुश्त मिला है। हालांकि उनका चयन निर्विरोध नही हुआ है वो शशि थरूर को बकायदा चुनाव में हराकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं। खड़गे को 7897 और शशि थरूर को मात्र 1072 वोट मिले थे। उस वक्त भी गोदी मीडिया के कुछ साथी थरूर का समर्थन का रहे थे।।

अब मैं कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए मुखिया के चयन पर आता हूं। हालांकि वहां दो नाम पहले से ही मुख्य रेस में हैं लेकिन अगर उन दोनो में सहमति न बने तो आप मल्लिकार्जुन खड़गे को मुख्यमंत्री बना सकते हैं । वैसे तो अब केंद्र की राजनीति कर रहें हैं और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं इस लिहाज से सीएम का पद उनके लिए बहुत छोटा है पर आप अगर एक दलित को मुख्यमंत्री बनाना चाहे तो कोई हर्ज भी नही है। अगर आप वास्तव में दलित कार्ड खेलना ही चाहते हैं तो कांग्रेस की तरफ से उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया जा सकता है और शायद आपके गठबंधन के नेता भी इससे सहमत हो जाए। कांग्रेस के ऊपर जगजीवनराम को प्रधानमंत्री न बनने देने का आरोप अभी भी लगा हुआ है और कांग्रेस इसे धूल सकती है। मेरा जहां तक मानना है कि उत्तर प्रदेश को छोड़कर पूरे भारत में दलित वोट आपके साथ आ सकता है।

अब आप सोचेंगे ऐसा क्या है खड़गे में तो आपको बता दूं कि खड़गे की राजनैतिक पृष्ठ भूमि काफी मजबूत है। 21जुलाई 1942 को जन्मे खड़गे ने अपनी शिक्षा गुलबर्गा क्षेत्र से प्राप्त की है। स्नातक और लॉ किए हुए खड़गे ने 1969 से अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत की। 1972 में पहली बार विधायक बने। 1976 में कर्नाटक सरकार में राज्य मंत्री बने। और उसके बाद 1979 में कैबिनेट मंत्री बने। 2009 में केंद्रीय राजनीति में पदार्पण किया और गुलबर्गा से लोकसभा सांसद बने। केंद्र की सरकार में 2009 में ही उन्हें श्रम एवं रोजगार मंत्री बनाया। इसके बाद दोबारा केंद्र में 2013 में रेल मंत्री का पद भार संभाला। 2018 में कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बने। 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए और उन्हें कांग्रेस ने 2020 में राज्य सभा भेजा। 2021 में वे कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा में नेता विपक्ष रहे। और इसके बाद 17 अक्टूबर 2022 को से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित हुए।

अगर कांग्रेस को जीत का सिलसिला यूं ही बरकरार रखना है तो आपको दलित मुस्लिम राजनीति को उभारना ही होगा। कम से कम कर्नाटक की जीत के बाद ये डायलॉग तो बंद हो गया कि…… मोदी है तो मुमकिन है।……… दूसरा हर चुनाव राम जी और हनुमान जी नही जिताएंगे। इसलिए सांप्रदायिक कार्ड भी अब हर जगह काम नही आएगा। जनता आज महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से त्रस्त है। जनता को इनसे निजात चाहिए। कांग्रेस को कर्नाटक में जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने का बड़ा दवाब रहेगा। दूसरा राजस्थान जैसे प्रदेश में जो दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं उन पर लगाम लगानी पड़ेगी और ये खड़गे जी को देखना पड़ेगा। कांग्रेस के सत्ताधारी प्रदेशों में एससी एसटी आयोग कितने सक्रिय हैं ये भी आपको देखना होगा।

बस आगे देखते ही हैं कि कांग्रेस कैसे भाजपा से अपने आप को सही साबित करती है या दोनो एक दुसरे के पर्यायवाची हैं। कांग्रेस का बदलाव ही 2024 का भविष्य तय करेगा।

 

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