‘पहले हर आदमी इंसान हुआ करता था, बाद में हिन्दू मुसलमान हुआ करता था।

(शिब्ली रामपुरी)

रामपुर मनिहारान – निकटवर्ती गांव मल्हीपुर में आयोजित मुशायरे में शायरों ने अपने-अपने कलाम से देर रात तक समां बांधे रखा. देश प्रेम से ओतप्रोत रचनाएं प्रस्तुत की गई तो वर्तमान राजनीति पर भी शायरों ने जमकर कटाक्ष किए.द पोएट्री जंक्शन के तत्वावधान में आयोजित आल इंडिया मुशायरे में शायरों ने एक से बढ़कर एक कलाम सुनाकर श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया।
मुशायरे की शमा रोशन कांग्रेस जिलाध्यक्ष चौधरी मुज़फ्फर अली तोमर ने की।मुशायरे का आग़ाज़ क़ारी मआज़ ने नाते पाक से किया।शहंशाहे निज़ामत नदीम फ़र्रुख़ ने ख़ास अंदाज़ में क़लाम पेश करते हुए कहा ‘ये ख्वाहिशात का पंछी अजीब है हर रोज़,नई फ़िज़ाएँ नया आब दाना चाहता है। शहंशाहे तरन्नुम अज़्म शाकिरी ने बहुत खूबसूरत तरन्नुम में एक से बढ़कर एक ग़ज़लें पेश करते हुए कहा ‘आ मेरी मौत मेरी जान बचा ले आकर, ज़िंदगी रोज़ मुझे ज़ेरो ज़बर करती है। मुंबई से आई मोहतरमा तबस्सुम राणा ने अपनी शायरी से सभी का दिल जीत लिया।उन्होंने कहा ‘ग़म की इमारतों को भी मिस्मार कर दिया, अश्क़ों ने मेरे दर्द का इज़हार कर दिया। मशहूर शायर बिलाल सहारनपुरी ने कुछ यूँ कहा ‘पहले हर आदमी इंसान हुआ करता था, बाद में हिन्दू मुसलमान हुआ करता था।
वसीम राजुपुरी ने अपना क़लाम पेश करते हुए यूँ कहा ‘दिल का आँगन भीगा भीगा आँख के आँसू सूखे हैं, आज तो अल्लाह काम दिला दे कल से बच्चे भूखे हैं।
तारिक़ रामपुरी ने पढ़ा ‘हिचकियाँ शाम ओ सहर मुझको लगी रहती हैं, यार तुमको तो भुलाना भी नहीं आता है। युवा शायर ताहिर मलिक रामपुरी ने अपने इस शेर से ख़ूब तारीफ़ हासिल की उन्होंने पढ़ा ‘शजर हो या तकब्बुर से भरे सर टूट जाते हैं, जिन्हें झुकना नहीं आता वो अक्सर टूट जाते हैं । रहमान रज़ा ने कहा ‘अपनी सारी मुश्किलें मुश्किल कुशा पे छोड़ दो, फ़ैसला जो कुछ भी होगा सब ख़ुदा पे छोड़ दो।
मुशायरे की सदारत प्रोफ़ेसर सतीश चंद्र शर्मा अम्बालवी ने की।संचालन बिलाल सहारनपुरी ने किया।मुशायरे में कई शायरों को सम्मानित भी किया गया।कन्वीनर शहज़ाद अली ने सभी का आभार प्रकट किया।
वरिष्ठ सपा नेता फ़रहाद गाड़ा, अब्दुल्ला तारिक़ प्रधान, डॉ हसन, प्रभात पराशर, राव क़ासिम, शाहनवाज़ सैफ़ी,उमर मलिक, अनिल कुमार, फ़रमान, जुनैद आलम, मुकेश जैन, मोनू सिद्दीक़ी, अहमद सिद्दीक़ी, अब्दुल रहमान खान, मुक़र्र्म खान, ख़ुर्शीद क़ुरैशी, वहाब प्रधान,मंसूर खान आदि भारी संख्या में श्रोतागण की मौजूदगी रही.

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