(31 जुलाई पुण्यतिथि) —- कब मिलेगा आवाज के जादूगर मौ0 रफी को भारत रत्न

(शिब्ली रामपुरी)

जब तक संगीत की दुनिया रहेंगी मौ0 रफी का नाम आवाज के जादूगर के तौर पर हर दिल में अमर रहेंगा।मशहूर संगीतकार नौशाद ने आवाज के जादूगर मौ0 रफी के निधन पर ये शेर कहा था,

कहता हैं कोई दिल गया दिलबर चला गया
साहिल पुकारता हैं समन्द्र चला गया,

लेकिन जो बात सच हैं वो कहता नही कोई
दुनिया से मौसिकी का पयम्बर चला गया।

वाकई रफी साहब के हमसे जुदा होनें के बाद यही महसूस होता हैं कि इस संसार से मौसिकी का पयम्बर चला गया है।

24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर की पावन धरती के एक गांव कोटला सुल्तान सिंह पर जन्में मौ0 रफी के पिता का नाम हाजी अली मौहम्मद और माता का नाम अल्लाह रक्खी था।संगीत के प्रति रफी साहब का बचपन से ही गहरा लगाव था।वे बचपन में ही अपनें गांव के एक फकीर की आवाज से प्रभावित होकर उसके सानिध्य में आ गए और वही उनका पहला गुरू बना।मौ0 रफी की संगीत के प्रति अटूट लगन को देखकर उनके परिवार वालों नें उन्हें पंडित जीवनलाल,उस्ताद बडे गुलाम अली खान,उस्ताद अब्दुल वहीद खान जैसे संगीत के विषारदो से संगीत की षिक्षा दिलवाई।यही संगीत की शिक्षा आगे चलकर उनके काम आई।

रफी साहब की संगीत के प्रति दीवानगी और उनकी प्रतिभा को पहली बार संगीतकार श्याम सुन्दर नें पहचाना और उन्हें सन 1942 में पंजाबी फिल्म गुल बलौच में जीनत बेगम के साथ युगल गीत गानें का अवसर दिया।गीत के बोल थे,सोनिए नी हीरिए नी।मौ0 रफी सन 1944 में मुंबई चले आए और मुंबई आकर वे मषहूर संगीतकार नौषाद से मिलें।मौ0 रफी की दिली तमन्ना थी कि वे एक बार उस समय के मषहूर गायक कुन्दनलाल सहगल के साथ गाएं।उन्होंने इसका जिक्र संगीतकार नौषाद से किया,बल्कि उनकी मिन्नतें और खुषामद की कि उन्हें केएल सहगल के साथ गीत गानें का मौका दिया जाए।लेकिन उस समय बन रही फिल्म षाहजहां जिसके गीत रिकार्डिंग का कार्य पूरा हो चुका था।फिर भी संगीतकार नौषाद ने मौ0 रफी को फिल्म के एक कोरस,रूही रूही मेरे सपनों की रानी में गीत गानें का मौका दिया।उस कोरस मे अपनी आवाज देने के बाद मौ0 रफी बहुत खुष हुए।सन 1945 में मौ0 रफी ने अपनें मामू की बेटी बिलकीस बेगम से विवाह कर लिया।मौ0 रफी के सात बच्चें हुए।तीन बेटियां और चार बेटे,लेकिन संगीत की दुनिया से कोई ना जुड सका।रफी के छोटे भाई मौ0 षफी नें भी गायकी में पहचान बनानें का प्रयास किया,लेकिन उनकी किस्मत इस क्षेत्र मे उनका साथ ना दे सकी और मौ0 षफी दुबई में जाकर बस गए।रफी साहब नें एक से बढकर एक गीत गाएं।उनका गाया हर गीत लाजवाब हैं।उनकी आवाज में वो कशिश हैं कि यदि राह चलते किसी इंसान तक पहुंच जाए तो एक बार वो भी रूककर सुनने लगता हैं और उसका मन कह उठता हैं कि वाह क्या खूबसूरत,दिलकष आवाज हैं।आवाज के जादूगर मौ0 रफी को युं तो कई पुरस्कारों से नवाजा गया। 6 बार फिल्म फेयर अवार्ड व 1965 में पदमश्री से भी सम्मानित किया गया।लेकिन गहरे अफसोस की बात हैं कि उन्हें भारत रत्न से सम्मानित नही किया गया।जिसके वो पूरी तरह से हकदार थे।उनके जीवन में ना सही मरणोपरान्त ही उन्हें ये सम्मान मिलना चाहिए।

मौ0 रफी 31 जौलाई 1980 को इस दुनिया को अलविदा कह गए,लेकिन आवाज की दुनिया में उनका नाम हमेशा जगमगाता रहेगा।मौ0 रफी अपने गीतों के माध्यम से हमेशा हमारे दिलों मे अमर रहेंगे।

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