क्या अखिलेश को वोट देकर एक समाज पछता रहा है?
ट्विटर पर ही इस समाज की समस्याएं उठाने के लिए मिला था अखिलेश को वोट?
(शिब्ली रामपुरी)
भाजपा और समाजवादी पार्टी में क्या फर्क है. यदि हम इस पर गौर करें तो यही बात सामने आएगी कि दोनों पार्टियों की सियासत में फर्क है उनके सियासी नजरिए में अंतर है. मशहूर है और साफ भी है कि भाजपा बहुसंख्यक वर्ग के लोगों के हितों की बात करती है तो वहीं समाजवादी पार्टी अल्पसंख्यक खासतौर पर मुस्लिम समाज की हमदर्द मानी जाती रही है और वह पॉलिटिक्स में भी समाज के लोगों को अधिक से अधिक टिकट देती है लेकिन वर्तमान समय में हालात समाजवादी पार्टी में भी काफी बदलते दिखाई दे रहे हैं जिसका खामियाजा भी कहीं ना कहीं इस पार्टी को जरूर उठाना पड़ा है.
यूपी में 2017 में भाजपा काफी वक्त के बाद सत्ता में आई और उसने जनता खासतौर पर जो उसके वोट माने जाते हैं उन लोगों के हितों के लिए काफी काम किया और यही वजह रही कि एक बार फिर 2022 में भी भाजपा को शानदार तरीके से सफलता मिली जहां तक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की बात है तो उन्होंने भी एड़ी चोटी का जोर चुनाव में लगाया और माना गया कि सपा की लहर है लेकिन लहर किनारे तक नहीं पहुंच सकी और समाजवादी पार्टी सत्ता तक पहुंचने में नाकामयाब रही.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2022 में जिस समाज का 86 परसेंट वोट मिला था आज वह समाज शायद अखिलेश यादव को वोट देकर पछता रहा है? ये वो बात है जो दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम से लेकर बैरिस्टर ओवेसी और कई राजनीतिक दलों के नेता बोल चुके हैं.कई उलेमा भी इस बात पर नाराजगी जता चुके हैं कि अखिलेश यादव को सबसे ज्यादा जिस समाज का वोट मिला अफसोस वो उसी समाज के बदहाली के बारे में एक शब्द तक नहीं बोलते और अगर बोलते हैं तो सिर्फ ट्विटर पर कोई ट्वीट कर देते हैं.
अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक वर्ग का सबसे ज्यादा वोट मिला. बताया जाता है कि 86% इस वर्ग का वोट अखिलेश यादव के पक्ष में गया जिसकी बदौलत अखिलेश यादव एक मजबूत विपक्ष के तौर पर सामने आए लेकिन क्या वह मजबूत विपक्ष बन सके?
वर्तमान समय में जिस तरह के हालात से अल्पसंख्यक समाज को गुजरना पड़ रहा है उसमें अखिलेश यादव से समाज की उम्मीदें काफी बढ़ जाती है लेकिन सबसे बड़े अफसोस की बात यह है कि अखिलेश यादव इस समाज के सामने पेश आती समस्याओं पर मौन धारण किए हुए रहते हैं और अगर वह कुछ भी बोलते भी हैं तो सिर्फ उनकी बात ट्विटर तक ही सीमित रहती है. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह समाज अखिलेश यादव को इतनी बड़ी संख्या में वोट देकर मजबूत विपक्ष बनाकर शायद अब पछता रहा है?लोकसभा चुनाव में भी सपा को इसका नुकसान होना तय माना जा रहा है.