उत्तराखंड में किस करवट बैठेगा चुनावी ऊंट, कयासों का दौर जारी, बीएसपी, आप और यूकेडी ने बढाई बीजेपी/कांग्रेस की टेंशन

उत्तराखंड की पांचवीं विधानसभा के गठन के लिए 14 फरवरी को हुए मतदान के बाद सियासी दलों के बीच अब हार-जीत के गुणा-भाग के साथ कयासों का दौर शुरू हो गया है। भाजपा जहां दोबारा सत्ता में वापसी कर हर पांच साल में सरकार बदलने का मिथक तोड़ने का दम भर रही है, वहीं कांग्रेस भी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। 10 मार्च को परिणाम आने के बाद ही पता चल पाएगा कि चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा।

पिछले दो सालों से उत्तराखंड में कोरोना महामारी का साया है। कोरोना महामारी के साये में प्रचार की फीकी रंगत के बीच 65.10 प्रतिशत मतदान को चुनाव आयोग से जुड़ी मशीनरी बड़ी उपलब्धि मान रही है। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद पहले तीन विस चुनाव में मत प्रतिशत में लगातार वृद्धि हुई। हालांकि, वर्ष 2017 के चुनाव में करीब एक प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। इस बार आंकड़ा पिछले चुनाव के इर्द-गिर्द ही है। मतदान को लेकर राजनीतिक विश्लेषक और पार्टियां अलग-अलग आकलन कर रही हैं। भाजपा को पूरा विश्वास है कि जनता ने सत्ता की चाबी पुन: उसे सौंपी है तो कांग्रेस भी इस बात को लेकर आश्वस्त दिख रही है कि राज्य में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा

मुद्दों की अगर बात करें तो पांच साल राज करने और तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी भाजपा जनता के सामने कुछ खास उपलब्धियां नहीं रख पाई। भाजपा आखिरकार मोदी नाम के सहारे ही मैदान में उतरी। पिछले चुनाव में इसी मोदी मैजिक ने उसे प्रचंड बहुमत दिलाया था। भाजपा को विश्वास है कि उत्तराखंड की जनता में मोदी को लेकर अब भी क्रेज बरकरार है और उसे इस बार भी फायदा जरूर मिलेगा। 
वहीं, कांग्रेस जहां इसी बात को मुद्दा बनाते हुए जनता के बीच पहुंची, अगर भाजपा ने पांच साल विकास किया है तो उसे मोदी मैजिक की जरूरत क्यों पड़ रही है। कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अवैध खनन जैसे मुद्दों के साथ चुनाव में जनता के द्वार गई। वहीं चारधाम चार काम जैसी लोक लुभावनी घोषणाओं ने भी जनता का ध्यान खिंचा है। इसलिए उसे विश्वास है कि उत्तराखंड की जनता ने उसके हक में मतदान किया है। उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में अंतरिम के बाद पहली विधानसभा के गठन के लिए वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनाव 52.34 प्रतिशत वोट पड़े थे, जो अब तक का सबसे न्यूनतम आंकड़ा है। इसके बाद वर्ष 2007 में हुए चुनाव में मतों यह प्रतिशत बढ़कर 63.10 पर जा पहुंचा। वर्ष 2012 में बंपर वोट पड़े।
मतदाताओं ने पिछले दो चुनावों का रिकार्ड तोड़ते हुए इसे 66.85 प्रतिशत तक पहुंचा दिया। यह अभी तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। इसके बाद वर्ष 2017 में हुए चुनाव में मत प्रतिशत फिर गिरकर 65.64 पर आकर अटक गया। जबकि वर्ष 2022 का मत प्रतिशत 65.10 पर रहा।वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में कुल मतदान का 25.45 प्रतिशत हिस्सा मतदाताओं ने भाजपा को दिया तो 26.91 प्रतिशत वोट कांग्रेस के हिस्से में आए। वहीं 10.93 प्रतिशत वोट लेकर बसपा ने चौंकाया तो 16.30 प्रतिशत निर्दलियों को देकर खुश किया।
इसके बाद वर्ष 2007 के चुनाव में भाजपा के हिस्से में 31.90 प्रतिशत वोट आए तो कांग्रेस ने भी अपना रुतबा बढ़ाते हुए 29.59 प्रतिशत मत हासिल किए। वहीं बसपा को 11.76 प्रतिशत तो निर्दलियों को 10.81 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। वर्ष 2012 की बात करें तो इस बार भी भाजपा-कांग्रेस का मत प्रतिशत बढ़ा। दोनों दलों को क्रमश: 33.13 और 33.79 प्रतिशत मत मिले। जबकि बसपा का मत प्रतिशत बढ़कर 12.19 प्रतिशत पर जा पहुंचा। वहीं निर्दलियों को 12.34 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। वर्ष 2017 में भाजपा ने सर्वाधिक 46.51 प्रतिशत मत पाकर सारे रिकार्ड तोड़ दिए तो कांग्रेस के प्रदर्शन में मामूली अंतर के साथ वह 33.49 प्रतिशत पाकर पुन: दूसरे नंबर पर रही। वहीं बसपा का मत प्रतिशत गिरकर 6.98 पर जा पहुंचा तो निर्दलियों को 10.04 प्रतिशत पर ही संतोष करना पड़ा।

वर्ष 2017 के विस चुनाव में भाजपा ने जहां 57 सीटें पाकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था, वहीं कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट गई थी। इनमें एक मात्र सीट हल्द्वानी की ऐसी थी, जो इंदिरा ह्दयेश ने साढ़े छह हजार वोटों के अंतर से जीती थी, जबकि दो सीटें एक हजार से भी कम अंतर, चार सीटें दो हजार से भी कम अंतर और चार सीटें चार हजार से भी कम अंतर से कांग्रेस ने जीती थीं। भाजपा के पूरण सिंह फर्तवाल 148 वोटों से जीते थे तो कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद सिंह कुंजवाल को मात्र 399 वोटों से जीत मिली थी। वहीं भाजपा की रेखा आर्य ने मात्र 710 तो भाजपा की ही मीना गंगोला ने मात्र 805 वोटों से जीत दर्ज की थी। माना जा रहा है कि बीते चुनाव में मोदी मैजिक की वजह से ऐसा हुआ था, इस बार हार-जीत का यह अंतर घट-बढ़ सकता है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल का कहना है कि पूरे चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा ने तमाम ऐसी चालें चलीं ताकि चुनाव मुद्दों से भटक जाए। उपलब्धियों के नाम पर उनके पास बताने के लिए कुछ नहीं था। हम उत्तराखंड के मुद्दों पर अडिग रहे। पूरे चुनाव में हमें जनता का भरपूर सहयोग मिला है। यह तय है कि 10 मार्च को हम सरकार बनाने जा रहे हैं। 

 

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